Tuesday, April 2, 2019

गज़ब आंटियाँ-2

आंटी 3  - दिल्ली की लो फ्लोर बस सवारियों से ठसाठस भरी थी। उस पर भी हर स्टॉप से लोग बस में सवार होते जा रहे थे। रूट बहुत लंबा था तो ज़्यादातर सवारियों की कोशिश यही थी कि कैसै भी करके बैठने के लिए सीट मिल जाए। ज़्यादातर महिलाएँ आरक्षित सीटों पर ही बैठने की कोशिश करती हैं। एक आदमी पहले से महिला आरक्षित सीट पर विराजमान था और उसने अपनी आँखें जान बूझकर बंद कर रखी थीं या वह सच में सोया था, यह वही जाने। एक लड़की ने उस आदमी को उठने के लिए कहा तो उसने पहले लड़की को देखा फिर इधर-उधर नज़र घुमाई और आँख बंद करके सो गया। तभी भीड़ में खड़े होने के लिए जगह बनाती हुई एक लंबी व पतली आंटी जी उस आदमी से बोली बेटा तबीयत खराब है क्या? पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। तब आंटी जी उस लड़की को लगभग डाँटते हुए ऊँचे स्वर में बोली, अपनी आँखों की जाँच करा लो, तुम्हें ठीक से दिखता नहीं है, चश्मा लगाया करो। लड़की को उनकी बात अखरी पर इससे पहले कि वह कोई जवाब देती, आंटी जी फिर बोली कि लेडिज़ सीट पर लेडिज़ ही बैठती है। ध्यान से देख यह आदमी नहीं औरत ही है। केवल दिखने और वेशभूषा से कोई आदमी थोड़े होता है। आदमी होता तो लेडिज़ सीट पर क्यों बैठता? पक्का यह औरत ही है। आंटी जी की यह बात सुनते ही उस आदमी ने आँखें खोली तो उन्होंने ऊपर लिखे केवल महिलाएँ की ओर संकेत किया और बोली बेटा तुम लेडिज़ ही हो न। सोने का नाटक करने वाला वह आदमी सीट छोड़कर खड़ा हो गया। वह समझ गया था कि उनके कटाक्ष के सामने उसका अभिनय बेअसर है। सीट खाली होने पर लड़की ने आंटी जी को बैठने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि तुम थकी हुई लग रही हो इसलिए बैठ जाओ। तभी पीछे से कंडक्टर महाशय, जो अब तक चुप थे, उनकी आवाज़ आई कि बस में बहुत भीड़ है। यह तो लड़की है, खड़ी हो जाएगी। आप बुज़ुर्ग हैं, बैठ जाइए। आंटी जी झट से उससे बोली कि आजकल का जो खानपान है। उसके हिसाब से बुड्ढे-जवान सबकी सेहत एक जैसी है। उनकी इस बात पर सब हँस दिए। आंटी जी का बड़बोलापन, तेज़ दिमाग और हाज़िर-जवाबी देखकर मेरे मन ने कहा वाह! क्या बात है।

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