Sunday, April 14, 2019

An Invigilation Day

Room No : ........
कक्षा IX - कैमेस्ट्री,    कक्षा IX - गणित
कक्षा VIII - कंप्यूटर,  कक्षा VI - सामाजिक विज्ञान

स्कूली परीक्षा के लिए चालीस छात्र एक कमरे में बैठाना वह भी चार अलग-अलग कक्षाओं के दस-दस छात्रों को जाने किस खुराफाती दिमाग की उपज है। उस पर क्या मेल करके बैठाया है। ग्यारहवीं कक्षा के लड़कों के साथ आठवीं की लड़कियाँ और नौवीं कक्षा की लड़कियों के साथ छठी के लड़के। बड़े हो या छोटे लड़के बिना बवाल किए नहीं रहते। परीक्षा ठहरी तीन घंटे की। आरंभिक डेढ़ घंटा परीक्षा की औपचारिकताओं एवं विद्यार्थियों के आत्ममंथन का होता है। यह समय हर निरीक्षक के लिए सुकून भरा या कहें कि नींद भरा होता है क्योंकि सारे परीक्षार्थी अपने में मग्न होते है, जिसे जितना आता है, करता है। कहानी तो मध्यांतर के बाद शुरू होती है। आठवीं कक्षा की कंप्यूटर की परीक्षा समय से पहले ही समाप्त। यानि तीन घंटे का पेपर डेढ़ घंटे में पूरा। वह भी एक, दो नहीं पूरा आठ छात्राओं का। प्रश्न-पत्र तैयार करने वाले को थोड़ा तो परीक्षक का भी ध्यान रखना चाहिए था। छात्र केंद्रित शिक्षा व्यवस्था की यही सबसे बड़ी समस्या है। अब छात्राओं का समय कैसे गुज़रे। उधर छठी के लड़के भी ताक में हैं कि कब मौका मिले और कुछ मदद मिले। किसी को प्रश्न-पत्र मेज़ से नीचे गिरने के लिए तो किसी को पैन से आवाज़ करने के लिए मना किया जा रहा है। इनके चेहरों और हरकतों से लगता है कि इनके लिए सामाजिक विज्ञान, ज्ञान का नहीं सिर दर्द का विषय है। कितनी बार डाँटा पर असर नहीं। सामने की पहली सीट पर बैठा ग्यारहवीं का छात्र अपना पेपर छोड़कर साथ बैठी आठवीं की छात्रा को जाने क्या समझा रहा है पर वह कोई रुचि नहीं दिखा रही, बेचारी मुँह बनाकर बस जुनियर होने के नाते उसे झेल रही है। जी में आया कि उससे कहूँ बेटा टीचरगिरी छोड़कर पेपर पूरा करने पर ध्यान दे। जब वह नहीं मानता दिखा तो यहाँ हस्तक्षेप करना आवश्यक हो गया। मैंने छात्र से पूछा कि क्या हो रहा है तो उसने न में सिर हिला दिया। मैंने हिदायत दी कि अपने पेपर पर ध्यान दो तो तपाक से बोला, हो गया। मैंने पूछा-पूरा, उसने फिर न में सिर हिला दिया और मुसकराकर बोला कि तीन प्रश्न नहीं आ रहे, आप थोड़ा बता दो, मैंने उसे घूरकर देखा तो उसने सिर झुका लिया। साथ बैठी लड़की को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा, वह बैठी-बैठी ऊब रही है। आखिरी सीट पर बैठा छात्र लिखते हुए खड़ा हो गया। मैंने उसे बैठने का संकेत किया तो वह बैठ गया। जब दूसरी बार वह खड़ा हुआ तो मुझे लगा कि शायद वह कुछ गड़बड़ कर रहा है। मैंने उसे डाँटते हुए कहा कि तुम नकल कर रहे हो क्या। उसने घबराकर कहा कि नहीं। मैंने उसके हाथ से नक्शा लेकर देखा, वह कोरा था, शब्द तो दूर कहीं पेन्सिल का कोई निशान तक नज़र नहीं आया। आंसर शीट भी देखी पर नकल जैसा कुछ नहीं दिखा। मेरा संदेह व्यर्थ निकलता देख मैंने कहा कि तुम खड़े क्यों हो जाते हो? उसने कहा कि खड़े होकर लिखने से लिखने की गति तेज़ हो जाती है। मैंने साथ बैठी छात्रा को उम्मीद भरी नज़रों से देखकर कि शायद वह मेरा साथ दे, पूछा कि तुम्हें इसके खड़े होने से कोई परेशानी है पर उसने भी न में सिर हिला दिया। अब करना क्या था मैंने लड़के खड़े न होने के निर्देश के साथ बैठने को कहा। सामने से दायीं ओर तीसरी सीट का दृश्य कुछ अलग है। ग्यारहवीं का छात्र अपनी कमिस्ट्री की परीक्षा में रमा हुआ है, वह इतना रमा है कि लिखते समय उसकी उंगलियों के साथ मुँह भी 35 डिग्री तक टेढ़ा हो जाता है। इसे देखकर लगा कि कहीं तेज़ी से लिखते समय मेरा मुँह भी...इस पर ध्यान देना पड़ेगा। साथ बैठी छात्रा उसके पेपर में ताँक-झाँक कर कही है और यह करते हुए वह आधी से ज़्यादा सीट घेर चुकी है, मुझे डर है कि कहीं यह थोड़ा और आगे खिसक गई तो वह बेचारा गिर ही न जाए। तभी नौवीं की एक छात्रा साथ बैठे हुए लड़के पर चिल्लाई कि ठीक से बैठ, अबकी बार हिला न तो देख। मैंने पूछा कि क्या हुआ तो उसने बताया कि कब से यह हिल रहा है, कभी दायें तो कभी बायें, मैंने इसे ठीक से बैठने के लिए कहा पर यह मान नहीं रहा, मेरा पूरा डायग्राम खराब करवा दिया है। मैंने लड़के से पूछा कि क्या बात है? ठीक से बैठा नहीं जा रहा। उसने कहा मैम मैं तो ठीक से ही बैठा हूँ, बस मेरे हाथ से दीदी की शीट हिल गई। मैंने उसकी आंसर शीट ली और खोलकर देखा तो बहुत कम प्रश्नों के उत्तर ही लिखे थे। मैंने उससे कहा अभी तो बहुत से प्रश्न रहते हैं, करते क्यों नहीं, अब क्या किताब लाकर सामने रखी जाए, तब करोगे। उसने धीमे से हँसते हुए कहा कि मैम मेरा लिखने का मन नहीं है। यह सुनकर गुस्सा तो बहुत आया कि बेचारे अध्यापकों का रिज़ल्ट खराब करने की हद ही हो गई। फिर उससे पूछा कि जो लिखा है, उससे पास हो जाओगे तो उसने हाँ में सिर हिला दिया। एक छात्रा अतिरिक्त शीट और बाँधने के लिए धागा लेने के लिए आई। मैंने उससे पूछा तुम्हारा तो कंप्यूटर का पेपर हो गया है, फिर ये किसलिए चाहिए? उसने अपने साथ बैठे लड़के की ओर संकेत करते हुए कहा कि भैया ने कहा है, लाने के लिए। मैं समझ गई कि यह खुद भी खाली बैठे परेशान हो गई होगी और अब सीट से उठने का मौका मिल गया है। मैंने उसे कहा कि तुम जाओ, जिसे चाहिए, वह स्वयं आकर ले। वहीं दूसरी ओर छठी का एक छात्र नक्शेे को आंसर शीट के बीच में रखकर उन्हें धागे से बाँधने के लिए पेन से छेेद करने की नाकाम कोशिश कर रहा है। साथ बैठी छात्रा समझ गई कि यह काम उसके वश का नहीं है। उसने उसके हाथ से आंसर शीट ली या कहें कि लगभग छीन ली और प्रकार (कंपस) से उसमें छेद करके धागे से बाँधकर फिर से अपने सवालों में उलझ गई। मैं खुद हैरान हूँ कि इन बच्चों ने तीन घंटे की परीक्षा में मुझे कितनी कहानियाँ दे दी हैं।

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